ये पोस्ट इस बात के लिये नहीं है की मांस खाना जायज है या नाजायज ये बात तो इस चित्र से ही साबित हो रही है की मांस खाना सभी धर्मो में जायज है ,बाकि डिटेल के लिये आप इस लिंक पर ये पोस्ट भी पढ़े {https://www.facebook.com/photo.php?fbid=432643510144765&set=pb.401376939938089.-2207520000.1380468043.&type=3&theater}
लेकिन यह पोस्ट इस बात के लिए है की मांस के लिए जानवर को किस तरह जिबह किया जाये, इस्लामी तरीका हलाल है बाकी सभी तरीके हराम है
इस पर भी लोग एतराज करते है की पशुओं को ज़िब्हा करने का इस्लामी तरीका निदर्यतापूर्ण है
यानि मुसलमान पशुओं को ज़िब्ह (हलाल) करते समय निदर्यतापूर्ण ढंग अपनाते हैं? अर्थात उन्हें यातना देकर धीरे-धीरे मारने का तरीका, इस पर बहुत लोग आपत्ति करते हैं?
लेकिन यह पोस्ट इस बात के लिए है की मांस के लिए जानवर को किस तरह जिबह किया जाये, इस्लामी तरीका हलाल है बाकी सभी तरीके हराम है
इस पर भी लोग एतराज करते है की पशुओं को ज़िब्हा करने का इस्लामी तरीका निदर्यतापूर्ण है
यानि मुसलमान पशुओं को ज़िब्ह (हलाल) करते समय निदर्यतापूर्ण ढंग अपनाते हैं? अर्थात उन्हें यातना देकर धीरे-धीरे मारने का तरीका, इस पर बहुत लोग आपत्ति करते हैं?
उत्तरः निम्नलिखित तथ्यों से सिद्ध होता है कि ज़बीहा का इस्लामी तरीकष न केवल मानवीयता पर आधारित है वरन् यह साइंटीफ़िक रूप से भी श्रेष्ठ है।
जानवर हलाल कने का इस्लामी तरीका
अरबी भाषा का शब्द ‘‘ज़क्कैतुम’’ जो क्रिया के रूप में प्रयोग किया जाता है उससे ही शब्द ‘‘ज़क़ात’’ निकलता है, जिसका अर्थ है ‘‘पवित्र करना।’’
जानवर को इस्लामी ढंग से ज़िब्हा करते समय निम्न शर्तों का पूर्ण
ध्यान रखा जाना आवश्यक है।
(क) जानवर को तेज़ धार वाली छुरी से ज़िब्हा किया जाए। ताकि जानवर को ज़िब्हा होते समय कम से कम कष्ट हो।
(ख) ज़बीहा एक विशेष शब्द है जिस से आश्य है कि ग्रीवा और गर्दन की नाड़ियाँ काटी जाएं। इस प्रकार ज़िब्हा करने से जानवर रीढ़ की हड्डी काटेे बिना मर जाता है।
(ग) ख़ून को बहा दिया जाए।
जानवर के सिर को धड़ से अलग करने से पूर्व आवश्यक है कि उसका सारा ख़ून पूरी तरह बहा दिया गया हो। इस प्रकार सारा ख़ून निकाल देने का उद्देश्य यह है कि यदि ख़ून शरीर में रह गया तो यह कीटाणुओं के पनपने का माध्यम बनेगा। रीढ़ की हड्डी अभी बिल्कुल नहीं काटी जानी चाहिए क्योंकि उसमें वह धमनियाँ होती हैं जो दिल तक जाती हैं। इस समय यदि वह धमनियाँ कट गईं तो दिल की गति रुक सकती है और इसके कारण ख़ून का बहाव रुक जाएगा। जिससे ख़ून नाड़ियों में जमा रह सकता है।
कीटाणुओं और बैक्टीरिया के लिये
ख़ून मुख्य माध्यम है
कीटाणुओं, बैक्टीरिया और विषाक्त तत्वों की उत्पति के लिये ख़ून एक सशक्त माध्यम है। अतः इस्लामी तरीके से ज़िब्हा करने से सारा ख़ून निकाल देना स्वास्थ्य के नियमों के अनुसार है क्योंकि उस ख़ून में कीटाणु और बैक्टीरिया तथा विषाक्त तत्व अधिकतम होते हैं।
मांस अधिक समय तक स्वच्छ और ताज़ा रहता है
इस्लामी तरीके से हलाल किये गए जानवर का मांस अधिक समय तक स्वच्छ और ताज़ा तथा खाने योग्य रहता है क्योंकि दूसरे तरीके से काटे गए जानवर के मांस की अपेक्षा उसमें ख़ून की मात्रा बहुत कम होती है।
जानवर को कष्ट नहीं होता
ग्रीवा की नाड़ियाँ तेज़ी से काटने के कारण दिमाग़ को जाने वाली
धमनियों तक ख़ून का प्रवाह रुक जाता है, जो पीड़ा का आभास उत्पन्न करती हैं। अतः जानवर को पीड़ा का आभास नहीं होता। याद रखिए कि हलाल किये जाते समय मरता हुआ कोई जानवर झटके नहीं लेता बल्कि उसमें तड़पने, फड़कने और थरथराने की स्थिति इसलिए होती है कि उसके पुट्ठों में ख़ून की कमी हो चुकी होती है और उनमें तनाव बहुत अधिक बढ़ता या घटता है।
जानवर हलाल कने का इस्लामी तरीका
अरबी भाषा का शब्द ‘‘ज़क्कैतुम’’ जो क्रिया के रूप में प्रयोग किया जाता है उससे ही शब्द ‘‘ज़क़ात’’ निकलता है, जिसका अर्थ है ‘‘पवित्र करना।’’
जानवर को इस्लामी ढंग से ज़िब्हा करते समय निम्न शर्तों का पूर्ण
ध्यान रखा जाना आवश्यक है।
(क) जानवर को तेज़ धार वाली छुरी से ज़िब्हा किया जाए। ताकि जानवर को ज़िब्हा होते समय कम से कम कष्ट हो।
(ख) ज़बीहा एक विशेष शब्द है जिस से आश्य है कि ग्रीवा और गर्दन की नाड़ियाँ काटी जाएं। इस प्रकार ज़िब्हा करने से जानवर रीढ़ की हड्डी काटेे बिना मर जाता है।
(ग) ख़ून को बहा दिया जाए।
जानवर के सिर को धड़ से अलग करने से पूर्व आवश्यक है कि उसका सारा ख़ून पूरी तरह बहा दिया गया हो। इस प्रकार सारा ख़ून निकाल देने का उद्देश्य यह है कि यदि ख़ून शरीर में रह गया तो यह कीटाणुओं के पनपने का माध्यम बनेगा। रीढ़ की हड्डी अभी बिल्कुल नहीं काटी जानी चाहिए क्योंकि उसमें वह धमनियाँ होती हैं जो दिल तक जाती हैं। इस समय यदि वह धमनियाँ कट गईं तो दिल की गति रुक सकती है और इसके कारण ख़ून का बहाव रुक जाएगा। जिससे ख़ून नाड़ियों में जमा रह सकता है।
कीटाणुओं और बैक्टीरिया के लिये
ख़ून मुख्य माध्यम है
कीटाणुओं, बैक्टीरिया और विषाक्त तत्वों की उत्पति के लिये ख़ून एक सशक्त माध्यम है। अतः इस्लामी तरीके से ज़िब्हा करने से सारा ख़ून निकाल देना स्वास्थ्य के नियमों के अनुसार है क्योंकि उस ख़ून में कीटाणु और बैक्टीरिया तथा विषाक्त तत्व अधिकतम होते हैं।
मांस अधिक समय तक स्वच्छ और ताज़ा रहता है
इस्लामी तरीके से हलाल किये गए जानवर का मांस अधिक समय तक स्वच्छ और ताज़ा तथा खाने योग्य रहता है क्योंकि दूसरे तरीके से काटे गए जानवर के मांस की अपेक्षा उसमें ख़ून की मात्रा बहुत कम होती है।
जानवर को कष्ट नहीं होता
ग्रीवा की नाड़ियाँ तेज़ी से काटने के कारण दिमाग़ को जाने वाली
धमनियों तक ख़ून का प्रवाह रुक जाता है, जो पीड़ा का आभास उत्पन्न करती हैं। अतः जानवर को पीड़ा का आभास नहीं होता। याद रखिए कि हलाल किये जाते समय मरता हुआ कोई जानवर झटके नहीं लेता बल्कि उसमें तड़पने, फड़कने और थरथराने की स्थिति इसलिए होती है कि उसके पुट्ठों में ख़ून की कमी हो चुकी होती है और उनमें तनाव बहुत अधिक बढ़ता या घटता है।
देखे क्लिप क्यों इस्लाम में गोश्त {मांस} खाना जायज है ,इस लिंक से
https://www.youtube.com/watch?v=hYblbEEFaLI
https://www.youtube.com/watch?v=hYblbEEFaLI
और आप इस लिंक से सुने डीबेट रश्मि भाई जवेरी और जाकिर नाइक के बीच में कि क्या मांसाहार उचित है या अनुचित https://www.youtube.com/watch?v=Ysreug3HUK8
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